भावार्थ:
मनुष्य को संसार का ज्ञान इन्द्रियों से होता है। मन इन्द्रियों से इन्द्रियों के विषय प्राप्त कर अन्तःकरण में स्थित संस्कार एवं राग-द्वेष के अनुरूप विषय में अनुकूलता और प्रतिकूलता करता है। बुद्धि विषय में अनुकूलता और प्रतिकूलता के भाव को मन से प्राप्त कर कार्य में प्रवृत अथवा निवृत होता है। बुद्धि के कार्य मनुष्य की प्रकृति और त्रिगुण से प्रभावित होते है। बुद्धि को विषय का ज्ञान और कार्य में प्रवृति अथवा निवृति तभी होती है जब उसको चेतना – चेतन तत्व से प्राप्त होती है।
इन्द्रियाँ, मन बुद्धि, और चेतन तत्व जो विज्ञानं है, उसका विस्तार से वर्णन अध्याय ३ श्लोक २७ और अध्याय १३ में हुआ है। मनुष्य को इस वञण को समझना अत्यंत आवश्यक है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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