श्रीमद भगवद गीता : ४२

चेतन तत्व इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि का प्रकाशक है।

 

इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः।

मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः ।।३-४२।।

 

शरीर से परे (श्रेष्ठ) इन्द्रियाँ कही जाती हैं; इन्द्रियों से परे मन है और मन से परे बुद्धि है, और जो बुद्धि से भी परे है, वह है चेतन तत्व। ||३-४२||

 

भावार्थ:

मनुष्य को संसार का ज्ञान इन्द्रियों से होता है। मन इन्द्रियों से इन्द्रियों के विषय प्राप्त कर अन्तःकरण में स्थित संस्कार एवं राग-द्वेष के अनुरूप विषय में अनुकूलता और प्रतिकूलता करता है। बुद्धि विषय में अनुकूलता और प्रतिकूलता के भाव को मन से प्राप्त कर कार्य में प्रवृत अथवा निवृत होता है। बुद्धि के कार्य मनुष्य की प्रकृति और त्रिगुण से प्रभावित होते है। बुद्धि को विषय का ज्ञान और कार्य में प्रवृति अथवा निवृति तभी होती है जब उसको चेतना – चेतन तत्व से प्राप्त होती है।

इन्द्रियाँ, मन बुद्धि, और चेतन तत्व जो विज्ञानं है, उसका विस्तार से वर्णन अध्याय ३ श्लोक २७ और अध्याय १३ में हुआ है। मनुष्य को इस वञण को समझना अत्यंत आवश्यक है।

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