भावार्थ:
अध्याय १६ श्लोक ८ में आसुर स्वभाव वाले पुरुष जिस अज्ञान को सत्य मानते है, उनको इस श्लोक में अल्प बुद्धि वाला कहा है।
अल्प बुद्धि मनुष्य जब सृष्टि के अधिष्ठान के रूप में श्रेष्ठ और दिव्य परमात्मतत्व (कारण स्वरूपा) का अस्तित्व ही स्वीकार नहीं करता है, तब वह अत्यन्त आत्मकेन्द्रित एवं स्वार्थी बन जाता है। तत्पश्चात् उसके जीवन का एकमात्र लक्ष्य, अधिकाधिक व्यक्तिगत लाभ अर्जित करना होता है। विषय वासनाओं की तृप्ति के द्वारा वह परम सन्तोष और आनन्द प्राप्त करने का सर्वसम्भव प्रयत्न करता है।
आत्मकेन्द्रित एवं स्वार्थी मनुष्य दूसरों का अहित (‘अहिताः’) करनेमें ही लगे रहते हैं और दूसरों का नुकसान करने में ही उनको सुख होता है। उनके कार्य बड़े भयानक (‘उग्रकर्माणः’) होते हैं और वह सरलता से अन्यों का वध कर देते है। उनको अपने से अधिक शक्तिशाली व्यक्ति से तो भय होगा, परन्तु उनको पारमार्थिक भय नहीं होता। उनके पास जो शक्ति, ऐश्वर्य, सामर्थ्य, पद, अथवा अधिकार है, वह सब का सब दूसरों का नाश करने में ही लगता है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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