श्रीमद भगवद गीता : ११

चिन्तामपरिमेयां च प्रलयान्तामुपाश्रिताः।

कामोपभोगपरमा एतावदिति निश्िचताः ।।१६-११।।

 

 

वे मृत्युपर्यन्त रहने वाली अपार चिन्ताओं का आश्रय लेने वाले, पदार्थोंका संग्रह और उनका भोग करनेमें ही लगे रहनेवाले और ‘जो कुछ है, वह इतना ही है’ – ऐसा निश्चय करनेवाले होते हैं। ।।१६-११।।

 

भावार्थ:

मृत्यु को प्राप्त होने तक उनकी सांसारिक चिन्ताएँ मिटती नहीं। जो आज के कार्य है, जो आज उनके आश्रित है, मृत्युपरान्त वह सब, उन सब का कैसे होगा, इसकी चिंता रहती है। इस कारण वह पदार्थों का संग्रह करने में ही लगे रहते है।

उनकी भोग-कामना कभी समाप्त नहीं होती। जितना है वह अपर्याप्त ही लगता है।

उनका यह विचार रहता है कि भविष्य की चिंता करने से, उद्योग करने से ही वस्तुओं का संग्रह होता है और यदि ऐसा न करें, तो जीवन निर्वाह भी न हो।

 

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