श्रीमद भगवद गीता : १२

आशापाशशतैर्बद्धाः कामक्रोधपरायणाः।

ईहन्ते कामभोगार्थमन्यायेनार्थसञ्चयान् ।।१६-१२।।

 

 

वे आशाकी सैकड़ों फाँसियोंसे बँधे हुए मनुष्य काम-क्रोधके परायण होकर पदार्थोंका भोग करनेके लिये अन्यायपूर्वक धन-संचय करनेकी चेष्टा करते रहते हैं। ।।१६-१२।।

 

भावार्थ:

आसुरी सम्पत्तिवाले मनुष्य की सांसारिक आशाएँ कभी पूरी नहीं होतीं। एक पूरी होती है तो दूसरी प्रकट हो जाती है और मृत्यु तक बानी रहती है।अतः यह पाश के समान है।

कामना पूर्ति को ही वह जीवन मानते है। कामना पूर्ति में बाधा देने वाले को क्रोध पूर्वक कष्ट देकर कामना पूर्ण करना उचित मानते है। क्रोधसे ही शासन चलता है, नहीं तो शासन को मानेगा ही कौन और शासन न रहने पर लोग हमारा सर्वस्व छीन लेंगे – ऐसा उनका विचार रहता है। इसी विचार और कार्य शैली से वह पदार्थोंका भोग करनेके लिये धन संचय करते है।

 

PREVIOUS                                                                                                                                          NEXT

धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष

धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]

Read More

अध्याय