श्रीमद भगवद गीता : २१

त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।

कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत् ।।१६-२१।।

 

 

काम, क्रोध और लोभ – ये तीन प्रकारके नरक के दरवाजे जीवात्मा का पतन करनेवाले हैं, इसलिये इन तीनोंका त्याग कर देना चाहिये। ।।१६-२१।।

 

भावार्थ:

भगवान श्री कृष्ण पूर्व श्लोक में वर्णित नरक से बचने के लिये कहते है कि आसुरी प्रकृति के मूल अवगुण काम, क्रोध और लोभ है। अतः इनका त्याग कर देना चाहिये।

काम, क्रोध और लोभ, ये तीनों मनुष्य का पतन करनेवाले हैं। जिनका उद्देश्य भोग भोगना और संग्रह करना होता है, वे लोग (अपनी समझसे) अपनी उन्नति करने के लिये इन तीनों दोषों को हितकारी मान लेते हैं। उनका यही भाव रहता है कि हम लोग काम आदि से सुख पायेंगे। यह भाव ही उनका पतन कर देता है। इसलिये मनुष्य को इनका त्याग कर देना चाहिये।

 

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