श्रीमद भगवद गीता : २२

एतैर्विमुक्तः कौन्तेय तमोद्वारैस्त्रिभिर्नरः।

आचरत्यात्मनः श्रेयस्ततो याति परां गतिम् ।।१६-२२।।

 

 

हे कुन्तीनन्दन! इन तमोद्वार से रहित हुआ जो मनुष्य अपने कल्याणका आचरण करता है, वह परमगतिको प्राप्त हो जाता है। ।।१६-२२।।

 

भावार्थ:

पूर्व श्लोक में जिनको नरकका द्वार बताया गया, उन्हीं काम, क्रोध और लोभ को यहाँ तमोद्वार कहा गया है। तम् नाम अन्धकारका है, जो अज्ञानसे उत्पन्न होता है।

जो साधक अपने कल्याण के लिये, अज्ञान से प्राप्त हुआ अन्धकार (काम, क्रोध और लोभ) का त्याग करने के लिये योग साधना करता है वह परमगतिको प्राप्त हो जाता है।

परमगति है परमात्मा की प्राप्ति।

 

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