भावार्थ:
मन में अनेक प्रकार की कामना होने के कारण भ्रमित हो कर अनेक उपाय एवं अनेक प्रकार के उपाय करता है। अध्याय २ श्लोक ४१ में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि अनन्त कामना वाले मनुष्य के विचार भी अनेक प्रकार से होते है। वह यह निश्चित नहीं कर पता क्या करना है और क्या नहीं। इस विवेक हीनता का वर्णन अध्याय १६ श्लोक ७ में भी हुआ है।
आसुरी प्रकृति वाले मनुष्य विवेक हीनता में फँसे होने के कारण संसारिक पदार्थों और भोगों में आसक्त रहते है। अन्तः यह मोहजाल उनके लिये नरक के समान हो जाता है। अथार्त दुःख ही बने रहते है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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