श्रीमद भगवद गीता : १६

अनेकचित्तविभ्रान्ता मोहजालसमावृताः।

प्रसक्ताः कामभोगेषु पतन्ति नरकेऽशुचौ ।।१६-१६।।

 

 

कामनाओं के कारण तरह-तरह से भ्रमित चित्तवाले, मोह-जालमें अच्छी तरहसे फँसे हुए तथा पदार्थों और भोगोंमें अत्यन्त आसक्त रहनेवाले मनुष्य भयङ्कर नरकोंमें गिरते हैं। ।।१६-१६।।

 

भावार्थ:

मन में अनेक प्रकार की कामना होने के कारण भ्रमित हो कर अनेक उपाय एवं अनेक प्रकार के उपाय करता है। अध्याय २ श्लोक ४१ में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि अनन्त कामना वाले मनुष्य के विचार भी अनेक प्रकार से होते है। वह यह निश्चित नहीं कर पता क्या करना है और क्या नहीं। इस विवेक हीनता का वर्णन अध्याय १६ श्लोक ७ में भी हुआ है।

आसुरी प्रकृति वाले मनुष्य विवेक हीनता में फँसे होने के कारण संसारिक पदार्थों और भोगों में आसक्त रहते है। अन्तः यह मोहजाल उनके लिये नरक के समान हो जाता है। अथार्त दुःख ही बने रहते है।

 

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