भावार्थ:
ऐसे आसुर मनुष्य बिना ही कारण सबसे वैर रखते हैं और सबका अनिष्ट करनेपर ही तुले रहते हैं। उनके कर्म बड़े क्रूर (दूसरों पर हिंसा) होते हैं। ऐसे वे क्रूर, निर्दयी, हिंसक मनुष्य नराधम अर्थात् मनुष्यों में महान् नीच होते हैं।
आसुरी मनुष्य में कामना अधिक होती है और कामना ही मनुष्य को आसुरी प्रकृति वाला बनती है। अतः एक बार आसुरी प्रकृति को प्राप्त मनुष्य उसी स्थिति में रहता है और वह कभी उससे बहार नहीं आ पाता।
भगवान श्री कृष्ण ने इस प्रकार के लोगों के लिये अधम आसुरी योनि का नाम दिया है। आसुरी मनुष्य एक अलग योनि ही प्रदान की है।
यह बात विचार करने की है अन्य जितनी भी योनियाँ है वह सब अपने धर्म का पालन करती है और किसी भी प्रकार से उनके कार्य नीच नहीं है। मनुष्य अगर स्वयं को श्रष्ट और अन्य योनियों को नीच योनि मानता है तो वह स्वयं की योनि के अहंकार में मानता है, जो की आसुरी प्रकृति है। आसुरी मनुष्य की नीचता, की तुलना अन्य किसी योनि से नहीं हो सकती।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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