श्रीमद भगवद गीता : ०४

दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च।

अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदमासुरीम् ।।१६-४।।

 

 

हे पृथानन्दन! दम्भ करना, घमण्ड करना, अभिमान करना, क्रोध करना, कठोरता रखना और अविवेकका होना – ये सभी आसुरी सम्पदा को प्राप्त हुए मनुष्यके लक्षण हैं। ।।१६-४।।

 

भावार्थ:

दम्भः आसुरी सम्पत्ति वाला मनुष्य स्वयं में सामर्थ्य, गुण न होने पर भी सामर्थ्य, गुण का पदर्शन करता है।

दर्पः आसुरी सम्पत्ति वाला मनुष्य, धन, सम्पदा, सामर्थ्य, गुण, होने पर क्रियाओं एवं शब्दों से दिखावा करता है। स्वयं को श्रेष्ठ और अन्य को निम्न दिखता है।

अभिमानः धन, सम्पदा, सामर्थ्य, गुण, होने पर स्वयं में अहंकार अनुभव करता है।

क्रोधः कामना पूर्ति, अहंता में बाधा लगने पर अथवा प्राप्त वस्तु का अन्य द्वारा शय होने होने पर अन्यों का अनिष्ट करने का भाव उत्पन्न होता है।

इस प्रकार यह सभी दुर्गुण आसुरी सम्पत्ति को धारण करने वाले मनुष्य में होते है, जिस से स्वयं और अन्यों का अहित ही होता है।

पुनः इन सभी दुर्गुण में राग-द्वेष और अहंता मुख्य कारण है।

 

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