श्रीमद भगवद गीता : ३६

सुखं त्विदानीं त्रिविधं श्रृणु मे भरतर्षभ।

अभ्यासाद्रमते यत्र दुःखान्तं च निगच्छति ।।१८-३६।।

 

 

हे भरतवंशियोंमें श्रेष्ठ अर्जुन! अब तीन प्रकारके सुखको भी तुम मेरेसे सुनो। जिसमें अभ्याससे रमण होता है और जिससे दुःखोंका अन्त हो जाता है। ।।१८-३६।।

 

भावार्थ:

अगले तीन श्लोक में अब भगवान श्रीकृष्ण सुख के तीन भेद बताते है।

साथ ही भगवान श्रीकृष्ण उस सुख के विषय में भी बताने का वचन देते है जिसको अभ्यास के द्वारा प्राप्त किया जाता है और जिस को प्राप्त करने के बाद दुःखों का अन्त हो जाता है। वह सुख योग साधना से प्राप्त होने वाला सुख, है।

अभ्यास से ज्यों-ज्यों सुख में रुचि, प्रियता बढ़ती जाती है, त्यों-त्यों परिणाममें दुःखोंका नाश होता जाता है और प्रसन्नता, सुख तथा आनन्द बढ़ते जाते हैं

अर्जुन संन्यास और त्यागके तत्त्वको जानना चाहते है अतः उनकी जिज्ञासा के उत्तर में भगवान्ने त्याग, ज्ञान, कर्म, कर्ता, बुद्धि और धृति के तीन-तीन भेद बताये। परन्तु इन सबमें ध्येय तो सुखका ही होता है। अतः भगवान् कहते हैं कि तुम उसी ध्येयकी सिद्धिके लिये सुखके भेद सुनो।

 

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