भावार्थ:
मनुष्य का जीवन आचरण किस प्रकार का हो, जीवन का ज्ञान क्या है, कर्ता कौन है, सृष्टि का कारण कौन है, प्रकृति का मूल तत्व क्या है। इस सम्पूर्ण ज्ञान जो अभी तक से १७ अध्याय में वर्णन हुआ है, उस का सारांश, इस अन्तिम अध्याय में मिलता है।
मनुष्य को प्राय सन्यास और त्याग के मूल् तत्व में भ्रम बना ही रहता है। उसके निवारण हेतू अर्जुन यह प्रश्न करते हैं।
अर्जुन कर्मोंका स्वरूपसे त्याग करना चाहते थे, जिसको वह संन्यास समझते थे। इसलिये उन्होंने त्याग और संन्यास का तत्व जानने के लिये प्रश्न किया।
अर्जुन के समान अन्य भी अध्यत्म के लिये संन्यास को उत्तम साधना मानते है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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