भावार्थ:
कर्म और कर्म के फल में आसक्ति होने पर ही मनुष्य को प्राप्त फल में इष्ट, अनिष्ट और मिश्रित भाव का अनुभव होता है। इष्ट फल की प्राप्ति पर सुख का अनुभव होता है और अनिष्ट फल की प्राप्ति पर दुःख सुख का अनुभव होता है। इस सुख-दुःख का अनुभव मनुष्य अपने जीवन कल में तो करता ही है, मृत्यु होने के बाद भी इन सुख-दुःख की परिकल्पना करता है।
परन्तु जो कर्मफल का त्यागी है, जो कर्म और कर्म फल की आसक्ति से रहित है, उसके लिये फल क्या तो इष्ट, क्या अनिष्ट और क्या ही मिश्रित। उसमें फल को लेकर पूर्ण रूप से समता रहती है। कर्मफल का त्यागी ही संन्यासी है। आसक्ति का त्यागी ही संन्यासी है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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