श्रीमद भगवद गीता : १५

शरीरवाङ्मनोभिर्यत्कर्म प्रारभते नरः।

न्याय्यं वा विपरीतं वा पञ्चैते तस्य हेतवः ।।१८-१५।।

 

 

मनुष्य, अपने शरीर, वाणी और मनके द्वारा शास्त्रविहित अथवा शास्त्रविरुद्ध जो कुछ भी कर्म आरम्भ करता है, उसके ये (पूर्वोक्त) पाँचों हेतु होते हैं। ।।१८-१५।।

 

भावार्थ:

शरीर, वाणी और मनके इन तीनो के द्वारा मनुष्य कार्य करता है। प्राय मनुष्य समझता है कि केवल शरीर के वाणी होने वाले कार्य ही कर्म है। मन से विचार करना, कामना करना, राग-दुवेश करना भी कार्य है। वाणी के द्वारा बोलना भी कार्य है।

अतः शरीर, वाणी और मनके द्वारा किये जाने वाले कार्य, चाहे शास्त्रविहित अथवा शास्त्रविरुद्ध, उन सब का हेतु पूर्व श्लोक में कहे गये पाँचों कारण है।

 

PREVIOUS                                                                                                                                          NEXT

धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष

धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]

Read More

अध्याय