भावार्थ:
मनुष्य शरीर में चेतना है, तो मनुष्य है। चेतना का प्रकाशक चेतना तत्व है और चेतना के प्रकाश में ही शरीर क्रिया शील है। मनुष्य द्वारा होने वाले कार्यों के लिये जो उपकरण है वह है – स्थूल, शरीर, ज्ञानेन्द्रिया, कर्मेंन्द्रिया, मन और बुद्धि। मन में होने वाले कार्य का कारण अन्तःकरण में इंगित संस्कार और चार विकार (इच्छा, दुवेश, सुख और दुःख) है। बुद्धि के द्वारा होने वाले कार्य का कारण मनुष्य की मूल प्रकृति – त्रिगुण (सत्व, रज, तम), है। अतः इन सब के सहयोग से ही मनुष्य शरीर में कार्य होते है।
परन्तु बुद्धि अज्ञानता वश, भ्रम के कारण, चेतना से प्रकाशित होने पर भी स्वयं को ही प्रकाशित मान लेती है। संस्कार एवं त्रिगुण के प्रभाव में शरीर (इन्द्रिय-मन), से होने वाली क्रिया को स्वयं के द्वारा होने वाली क्रिया मान लेता है। शरीर से सम्बन्ध मान कर स्वयं को फलों का भोक्ता मान लेता है। यह कर्ता एवं भोक्ता का भाव ही बुद्धि का अहंकार है। शरीर से माने हुये सम्बन्ध और कर्त्ता रूपी अहंकार से ही अन्तःकरण में विहित और निषिद्ध कार्यों का निर्देशन होता है। अहंकार और सम्बन्ध के न होने पर शरीर के द्वारा होने वाली क्रिया न विहित है और न ही निषिद्ध। शरीर के द्वारा होने वाले कार्य न पुण्य है न पाप।
अतः कौन किसी को मारेगा और कौन पाप का भोगी बनेगा!
युद्धका प्रसङ्ग होने के कारण भगवान श्री कृष्ण अर्जुनको युद्धके लिये प्रेरणा देते है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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