भावार्थ:
समाज में विद्वानों द्वारा चार प्रकार के त्याग कहें गये है, जिनको वह परमात्मा प्राप्ति का साधन मानते हैं।
कई विद्वान कामना पूर्ति के लिये किये जाने वाले कार्यों का त्याग सन्यास है। ऐसा कहते है।
कई विद्वान सम्पूर्ण कर्मोंके फलकी इच्छाका त्याग करनेका नाम त्याग है। ऐसा कहते है।
कई विद्वान् कहते हैं कि सम्पूर्ण कर्मों को दोषकी तरह छोड़ देना चाहिये।
अन्य विद्वान् कहते हैं कि दूसरे सब कर्मों का भले ही त्याग कर दें, पर यज्ञ, दान और तपरूप कर्मों का त्याग नहीं करना चाहिये।
इस श्लोक में विद्वानों द्वारा समाज में सन्यास और त्याग के लिये जो प्रचलित अर्थ है उसका वर्णन है। भगवान् श्रीकृष्ण का इस विषय में क्या मत है इसका वर्णन वे आगे के श्लोक मे करते हैं।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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