भावार्थ:
इन्द्रियों के विषय की स्मृति, परिस्थिति एवं प्राणियों को लेकर जो अनुभव है, संस्कार है उस को ज्ञान (अध्याय १८ श्लोक १८ में) कहा गया है। इस ज्ञान में विषय और प्राणी तो अलग-अलग है, परन्तु उन सब विभक्त प्राणियों में केवल एक विभाग रहित, अविनाशी मूल तत्व (परमात्मतत्व) को अनुभव करता है, उसका ज्ञान सात्त्विक है।
जैसा की अध्याय १३ श्लोक १६ में भी वर्णन हुआ है, विषय अलग-अलग है, प्राणी और प्राणी के आचरण भी अलग-अलग है, परन्तु जो साधक इस प्रकार विभक्त प्राणियों में राग-द्वेष नहीं करता, उनमें सम भाव रखता है और वह यह जानता है, कि विषय, प्राणी, आचरण का कारण रूप केवल परमात्मतत्व है और वह समान रूप से सबमें व्याप्त है। इस प्रकार का ज्ञान होना ही सात्त्विक ज्ञान है।
अध्याय १३ श्लोक ११ में तत्व ज्ञान ही ज्ञान हैअन्यथा बाकि सब अज्ञान है इसका वर्णन हुआ है। उस तत्व ज्ञान को ही इस श्लोक में सात्त्विक ज्ञान कहा है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
Read MoreTo give feedback write to info@standupbharat.in
Copyright © standupbharat 2024 | Copyright © Bhagavad Geeta – Jan Kalyan Stotr 2024