श्रीमद भगवद गीता : २२

यत्तु कृत्स्नवदेकस्मिन्कार्ये सक्तमहैतुकम्।

अतत्त्वार्थवदल्पं च तत्तामसमुदाहृतम् ।।१८-२२।।

 

 

किंतु जो (ज्ञान) एक कार्यरूप शरीरमें ही सम्पूर्णके तरह आसक्त है तथा जो युक्तिरहित, वास्तविक ज्ञानसे रहित और तुच्छ है, वह तामस कहा गया है। ।।१८-२२।। 

 

भावार्थ:

तामस मनुष्य शरीर में ही सम्पूर्ण रूप से आसक्त रहता है। वह नष्ट होने वाले अपने पञ्च भौतिक शरीर को ही अपना स्वरूप मानता है।

अध्याय १८ श्लोक २० में जिस ज्ञान को सात्विक ज्ञान कहा है। अध्याय १३ श्लोक ११ में जिस ज्ञान को “यह ही ज्ञान है” ऐसा कहा है। तामस मनुष्य उस ज्ञान से रहित होता है। भगवान श्री कृष्ण वास्तविक ज्ञान के अतिरिक्त जो संसारिक ज्ञान है, वह तुच्छ ज्ञान है ऐसा कहते है। इस प्रकार के तुच्छ ज्ञान से युक्त तामस मनुष्य को क्या करना है और क्या नहीं करना है, इस विवेक (युक्ति) से वह रहित होता है।

 

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