भावार्थ:
तामस मनुष्यमें मूढ़ताकी प्रधानता होनेसे वह कार्योँ को करने से पूर्व यह विचार नहीं करता कि इस कार्य का परिणाम क्या होगा, क्या इस कार्य को करने में मेरे मे सामर्थ्य है, इस में वय क्या और कितना होगा।
तामस मनुष्य कार्य पूर्ति के लिये, हिंसा भी कर देता है।
इस श्लोक मे अनुबन्धम् पद आया है जिसका अर्थ परिणाम होता है। भगवान श्रीकृष्ण कहते है कि मनुष्य को किसी भी कार्य को करने से पूर्व यह विचार करना चाहिये कि कार्य का परिणाम क्या होगा।
मूढ़ मनुष्य तुरंत यह विचार करेगा कि भगवान श्रीकृष्ण ने फल और कार्य की सिद्धि-असिद्धि की इच्छा नहीं करनी चाहिए ऐसा कहा है। तो फिर यहा विरोधाभास हो गया!
परन्तु यहाँ अनुबन्ध (परिणाम) से तात्पर्य यह है कि, मनुष्य को कार्य करने से पूर्व निश्चित ही विचार करना चाहिये कि क्या उस कार्य का परिणाम अधर्म तो नहीं है? शास्त्र निषिद्ध तो नहीं है? उसमें किसी प्रकार की अनुचित हानि, वय तो नहीं होगा?
निश्चित ही मनुष्य को सर्तकता रखनी चाहिये कि क्या उस कार्य और परिणाम में उसकी कामना, राग-द्वेष, भोग, आसक्ति तो नहीं छुपी है?
कार्य की सफलता के लिये उचित कार्य प्रणांली, सामर्थ्य, एवं अन्य व्यवस्था पर निषय ही विचार करना चाहिये, परन्तु ऐसा विचार करने के बाद उस कार्य की सिद्धि-असिद्धि परमात्मा पर छोड़ देना चाहिये। फल प्राप्ति की चाहा, और वह मनुष्य के अनुकूल हो ऐसी कामना नहीं होने चाहिये।
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