भावार्थ:
जो मनुष्य समता युक्त नहीं है, ज्ञान रहित है, मूढ़ है, वह कार्य को करने में सावधानी नहीं करता। सावधानी नहीं रखता कि कही कार्य और उसके परिणाम में उसकी कामना, राग-द्वेष, भोग, आसक्ति तो नहीं छुपी है?
जिस मनुष्य की आसक्ति प्राकृतिक पदार्थों में ही है और उनको प्राप्त करने के लिये सब कार्य होते है।
जो हठी, है, जिसके व्यवहार में सरलता, एवं नम्रता नहीं, प्रत्युत कठोरता है।
जो उपकार के बदले मे उपकार करने वाला है।
“दीर्घसूत्री” – जो कार्य की सफलता, और उसके परिणाम पर विचार नहीं करता।
जो आलसी एवं विषादी है, इस प्रकार का कर्ता तामसिक कर्ता है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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