भावार्थ:
जो बुद्धि पूर्ण रूप से ज्ञान युक्त, समता युक्त है, जिस बुद्धि का विवेक जाग्रत है, वह बुद्धि सात्विक बुद्धि है।
ऐसा होने पर ही सात्विक बुद्धि की कामनाओं से निवृति और कर्तव्यों के प्रति प्रवृति होती है। क्या कार्य करने योग्य है इसका ठीक-ठीक विचार होता है।
संसार में बन्धन क्या है और मोक्ष क्या है, इसका पूर्ण रूप से विवेक होता है।
इस श्लोक में भय और अभय पद मनुष्य के स्वयं के लिये नहीं है। कारण कि शरीर का भय शरीर से सम्बन्ध मानने से होता है। सम्बन्ध नहीं तो भय नहीं।
यहा भय उन कार्यों को करने से जिस कार्य से अभी और परिणाम में संसार का अनिष्ट होनेकी सम्भावना हो। जिस कार्यों से अभी और परिणाममें संसार का अनिष्ट न होता हो, हित कारक हो, वह कार्य अभय करनेवाला है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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