भावार्थ:
जो बुद्धि सात्विक बुद्धि से विपरीत है, वह राजसी बुद्धि है।
राग होनेसे राजसी बुद्धि में स्वार्थ, पक्षपात, विषमता आदि दोष आ जाते हैं। इन दोषों के रहते हुए बुद्धि धर्म-अधर्म, कार्य-अकार्य, भय-अभय, बन्ध-मोक्ष आदिके वास्तविक तत्त्व को ठीक-ठीक नहीं जान सकती। अतः किसी वर्णआश्रम के लिये किस परिस्थिति में कौन सा धर्म कहा जाता है और कौन सा अधर्म कहा जाता है वह धर्म किस वर्ण आश्रमके लिये कर्तव्य हो जाता है और किसके लिये अकर्तव्य हो जाता है। कौन सा कार्य भय युक्त है और कौन सा कार्य अभय देने वाला है, इन बातों को जो बुद्धि ठीक-ठीक नहीं जान सकती, वह बुद्धि राजसी है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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