भावार्थ:
सांसारिक लाभ-हानि, जय-पराजय, सुख-दुःख, आदर-निरादर, सिद्धि-असिद्धि में सम रहने का नाम योग (समता) है।
वह चाहा अथवा इच्छा जिसको प्राप्त करने पर उसका कभी व्य न हो, वह अव्यभिचार है। सुख, भोग, वस्तु, आदि की किञ्चिन्मात्र भी इच्छा न रखकर केवल परमात्मा को चाहना अव्यभिचार है।
दृढ़, अटल रखने की शक्ति का नाम धृति है।
जिस योगी (समतासे युक्त) की दृढ़ता केवल अव्यभिचार में होती ही है, वह मन, प्राण और इन्द्रियों की क्रियाओं को नियमित किये रहता है।
मन में रागद्वेषको लेकर होने वाले चिन्तन से रहित होना, मन को जहाँ लगाना चाहें, वहाँ लग जाना और जहाँ से हटाना चाहें, वहाँ से हट जाना आदि मन की क्रियाओं को नियमित करना है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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