भावार्थ:
जब राग अत्यधिक बढ़ जाता है, तब वह तमोगुणका रूप धारण कर लेता है। इसी को मोह (मूढता) कहते हैं। मूढता वश मनुष्य को सुख, निद्रा, आलस्य और प्रमाद से प्राप्त होता है। इस प्रकार का सुख तामसिक सुख है।
तामसी मनुष्य की कार्य को टालने की प्रवृत्ति होती है और इस प्रकार आलस्य में ही वह अपने समय को व्यतीत कर देता है। यही उसका सुख है। ऐसा मनुष्य विचार करने में भी आलसी होता है। इसलिए वह जीवन में यथार्थ निर्णय नहीं ले पाता।
घर, परिवार, शरीर आदिके आवश्यक कामोंको न करना और निठल्ले बैठे रहना प्रमाद है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
Read MoreTo give feedback write to info@standupbharat.in
Copyright © standupbharat 2024 | Copyright © Bhagavad Geeta – Jan Kalyan Stotr 2024