भावार्थ:
जो मनुष्य पूर्व श्लोकों में वर्णित स्वधर्म का पालन करता है, परन्तु कार्य अथवा प्रकृति पदार्थ, प्राणी से किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं रखता। जो आलस्य, प्रमाद आदि से शरीर के वशीभूत नहीं होता। जो राग-द्वेष, कामना से रहित है, जिसकी इन्द्रिय सयंमित है। ऐसा असक्तबुद्धि, जितात्मा और विगतस्पृह योगी सभी कार्यों को करता हुआ भी स्वतःसिद्ध निष्कर्मता को प्राप्त हो जाता है। निष्कर्मता को प्राप्त होना अथार्त परमात्मा को प्राप्त होना।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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