भावार्थ:
इस प्रकार जो साधना की सिद्धि से परमात्मतत्व को तत्व से जान लेता है। अर्थात, जो जान लेता है कि
अध्याय २ से अधयय १८ में जो कुछ भी विषय आये है, वह सब परमात्मतत्व को जानने के विषय है। इस प्रकार तत्व ज्ञान प्राप्त कर जो परमात्मा के लिये संसारिक कार्य करता है, वह परमात्मा में प्रविष्ट हो जाता है। अर्थात परमात्मा का स्वरूप हो जाता है।
स्पष्ट रहे कि पराभक्ति का अर्थ अपने कर्तव्यों को करना है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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