श्रीमद भगवद गीता : ५६

सर्वकर्माण्यपि सदा कुर्वाणो मद्व्यपाश्रयः।

मत्प्रसादादवाप्नोति शाश्वतं पदमव्ययम् ।। १८-५६।।

 

 

मेरा आश्रय लेने वाला भक्त सदा सब कर्म करता हुआ भी मेरी कृपा से शाश्वत अविनाशी पद को प्राप्त हो जाता है। ।। १८-५६।।

 

भावार्थ:

संसार के आश्रय का त्याग करने वाला भक्त (योग युक्त साधक) संसार के सभी कार्यों को करता है। क्योकि वे कार्य

  1. धर्म पूर्ण होते है,
  2. अन्यों के कल्याण के लिये होते है,
  3. अहंता से रहित कार्य होते है,

इसलिए उसके फल भी कल्याण रूपी, शाश्वत और अविनाशी होते है। अर्थात साधक परमात्मा को प्राप्त होता है।

इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण १७ अध्याय में सनातन धर्म रूपी ज्ञान का वर्णन करते हुये अपनी बात को पूर्ण करते है।

 

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