भावार्थ:
भगवान् कहते हैं कि जो सर्व व्यापक ईश्वर सम्पूर्ण शरीर में परमात्मतत्व रूप में विराजमान है और शरीर के क्रिया रूप होने में कारण है, तुम तू उसी की शरण में जाओं। तात्पर्य है कि सांसारिक उत्पत्ति-विनाशशील पदार्थ, वस्तु, व्यक्ति, घटना परिस्थिति आदि किसी का किञ्चिन्मात्र भी आश्रय न लेकर केवल अविनाशी परमात्मा का ही आश्रय ले।
भगवान् अर्जुन से कहते हैं कि शरीर से सम्बन्ध मान कर राग-द्वेष, आदि विकार जो तेरे स्वभाव में है उसका त्याग कर।
“सर्वभाव से ईश्वर की शरण में जाओ” से तात्पर्य यह हुआ कि मन से उसी परमात्मा का चिन्तन हो, सभी कार्य अन्यों के कल्याण के लिए हो, और उसके प्रत्येक विधान में परम प्रसन्नता हो। वह विधान चाहे शरीर, इन्द्रियाँ, मन आदि के अनुकूल हो, या प्रतिकूल।
ऐसा करने से तुम परम शांति को प्राप्त होगे जो कभी समाप्त नहीं होता।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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