श्रीमद भगवद गीता : ६३

इति ते ज्ञानमाख्यातं गुह्याद्गुह्यतरं मया।

विमृश्यैतदशेषेण यथेच्छसि तथा कुरु ।। १८-६३।।

 

इस प्रकार समस्त गोपनीयों से अधिक गुह्य ज्ञान मैंने तुमसे कहा; इस पर पूर्ण विचार (विमृश्य) करने के पश्चात् तुम्हारी जैसी इच्छा हो, वैसा तुम करो। ।। १८-६३।।  

 

भावार्थ:

अध्याय २ श्लोक ११ से भगवान् श्रीकृष्ण ने जो ज्ञान देना आरम्भ किया था, उसका वह इस श्लोक में समापन करते हैं। वह कहते है कि यह अत्यधिक गूढ़ ज्ञान मेने तुम्हें पूर्ण रूप से दिया है। अब तुम इस पर विचार करो और जेसा चाहो वैसा करो।

इस गूढ़ ज्ञान के कुछ मुख्य बिन्दु इस प्रकार है:

  1. परमात्मतत्व ज्ञान।
  2. मनुष्य में विकार और विषमताएं क्या है और उनको किस प्रकार दूर करे।
  3. सृष्टि चक्र किस प्रकार क्रिया शील है।
  4. मनुष्य के कर्तव्य क्या है और उनको किन-किन कारणों से करना अनिवार्य है
  5. शरीर की रचना और उससे होने वाली क्रिया का विज्ञान
  6. शरीर को प्राप्त चेतना का विज्ञान
  7. बुद्धि का विज्ञान और उसके अहंकार का कारण
  8. मनुष्य अहंकार का त्याग किस प्रकार करे।
  9. परमात्मा प्राप्ति का अर्थ क्या है और उसकी प्राप्ति किस प्रकार होती है।
  10. मनुष्य परमात्मा प्राप्ति के लिए साधना क्यों और किस प्रकार करें।

 

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