श्रीमद भगवद गीता : ६४

सर्वगुह्यतमं भूयः श्रृणु मे परमं वचः।

इष्टोऽसि मे दृढमिति ततो वक्ष्यामि ते हितम् ।। १८-६४।।

 

 

पुन: एक बार, तुम मुझसे समस्त गुह्यों में गुह्यतम परम वचन (उपदेश) को सुनो। तुम मुझे अतिशय प्रिय हो, इसलिए मैं तुम्हें तुम्हारे हित की बात कहूंगा। ।। १८-६४।।

 

भावार्थ:

पूर्व श्लोक में भगवान् श्रीकृष्ण, अर्जुन से कहते है कि मने जो गूढ़ ज्ञान अभी तक दिया है, उस पर विचार करो और अपने निष्कर्ष पर पहुँचो। ऐसा प्रतीत होता है कि अर्जुन फिर भी किसी निष्कर्ष पर पहुंच नहीं पाते। इसलिये अर्जुन को निष्कर्ष पर पहुँचाने के लिये भगवान् श्रीकृष्ण पूर्व में कहा हुआ गूढ़ ज्ञान पुनः संक्षिप्त में व्यक्त करते है।

भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुन को अपनत्त्व और हितेषी होने का आश्वासन देते है।

 

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