श्रीमद भगवद गीता : ६५

मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।

मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे ।। १८-६५।।

 

तू मेरा भक्त हो जा, मेरे में मनवाला हो जा, मेरा पूजन करने वाला हो जा और मेरे को नमस्कार कर। ऐसा करने से तू मेरे को ही प्राप्त हो जायगा। यह मैं तेरे सामने सत्य प्रतिज्ञा करता हूँ; क्योंकि तू मेरा अत्यन्त प्रिय है। ।। १८-६५।। 

 

भावार्थ:

अध्याय ९ श्लोक ३४ में जो वर्णन किया है उसको पुनः भगवान श्रीकृष्ण इस श्लोक में कहते है। यह श्लोक सम्पूर्ण श्रीमद् भगवद् गीता का सारांश है।

  1. मन को इन्द्रियों के विषयों से हटा कर, मन की चंचलता को नियमित कर स्थिर मन वाले बनो।
  2. अनन्य भाव से परमात्मा का चिंतन करो और अहंता का त्याग करो।
  3. मनुष्य धर्म का पालन करो।
  4. तुम्हारे सभी कार्य प्रकृति-समाज कल्याण के लिये हो।
  5. स्वयं में और सभी प्राणियों में केवल एक परमात्मतत्व व्याप्त है ऐसा भाव रखकर अहंता का त्याग करो।

इस प्रकार अन्तःकरण को समता से युक्त करने पर तुम परमात्मा को प्राप्त हो जाओगे।

मनुष्य धारण किये हुये, योग में स्थित भगवान श्रीकृष्ण परमात्मा स्वरूप है और अर्जुन के सखा है। इसलिए वे प्रतिज्ञा लेकर अर्जुन को विश्वास दिलाते है कि योग साधना करने से और अपना कर्तव्य (युद्ध) करने से तुम्हारा निश्चित रूप से कल्याण होगा।

 

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