श्रीमद भगवद गीता : ६८

य इमं परमं गुह्यं मद्भक्तेष्वभिधास्यति।

भक्ितं मयि परां कृत्वा मामेवैष्यत्यसंशयः।। १८-६८।।

 

मेरे में पराभक्ति करके जो इस परम गोपनीय संवाद-(गीता-ग्रन्थ) को मेरे भक्तों में कहेगा, वह मुझे ही प्राप्त होगा, इसमें कोई सन्देह नहीं है। ।। १८-६८।। 

 

भावार्थ:

यह भी सत्य है कि जो मनुष्य तुम्हारे और मेरे बिच हुये इस गूढ़ संवाद (गीता-ग्रन्थ) को सुन कर अथवा पढ़ कर इसका अनुसरण करेगा वह योग साधना में सिद्ध हो कर परमात्मा को प्राप्त होगा।

इस श्लोक में ‘पराभक्ति’ पद से स्पष्ट कहते है कि जो मनुष्य पूर्ण रूप से मनुष्य धर्म का पालन करेगा उसको ही परमात्मा की प्राप्ति होगी, अन्यथा नहीं। “सन्देह नहीं है” से परमात्मा प्राप्ति की निश्चयता सिद्ध की है।

केवल ग्रन्थ को पड़ने, सुनने अथवा सुनाने से परमात्मा की प्राप्ति नहीं है।

 

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