श्रीमद भगवद गीता : ६९

न च तस्मान्मनुष्येषु कश्िचन्मे प्रियकृत्तमः।

भविता न च मे तस्मादन्यः प्रियतरो भुवि।। १८-६९।।

 

उसके समान मेरा अत्यन्त प्रिय कार्य करनेवाला मनुष्यों में कोई भी नहीं है और इस भूमण्डलपर उसके समान मेरा दूसरा कोई प्रियतर होगा भी नहीं। ।। १८-६९।।

 

भावार्थ:

जो मनुष्य अहंता रहित हो कर मनुष्य धर्म का पालन करेगा, समाज कल्याण के लिये कार्य करेगा, वह मेरे लिये अत्यन्त प्रिय कार्य करनेवाला होगा। और इसलिये पुरे भूमण्डल पर उसके समान मेरा दूसरा कोई प्रियतर भी नहीं होगा।

अतः श्रेष्ठ पुरुष वही है जो:

  1. समता युक्त है
  2. मन को इन्द्रियों के विषयों से हटा कर, मन की चंचलता को नियमित कर स्थिर मन है।
  3. अनन्य भाव से परमात्मा का चिंतन करने वाला है।
  4. मनुष्य धर्म का पालन करता है।
  5. तुम्हारे सभी कार्य प्रकृति-समाज कल्याण के लिये करता है।
  6. स्वयं में और सभी प्राणियों में केवल एक परमात्मतत्व व्याप्त है ऐसा भाव रखता है
  7. सभी कार्यों का कर्त्ता स्वयं को न मान कर परमात्मा को इसका कारण देखता है। अर्थात अहंता रहित है।

 

 

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