भावार्थ:
भगवान श्रीकृष्ण के पूछने पर अर्जुन कहते है कई हे अच्युत! अपने मेरे पर बहुत कृपा की है। आपने कृपा करके जो तत्व ज्ञान का प्रसाद दिया है, उससे मेरी बुद्धि पर अज्ञानता के कारण जो आवरण पड़ा था, वह अब हट गया है। सम्बन्धों को लेकर जो मोह था वह नष्ट हो गया है। कृत-अकृत; धर्म-अधर्म को लेकर जो भी संशय थे, वह सब समाप्त हो गये है। अतः अब मैं युद्ध करने के लिये तत्पर हूँ।
बुद्धि में सांसारिक विषयों की स्मृति होती है। परन्तु अर्जुन इस स्मृति का वर्णन नहीं करते। वह इस बात को स्वीकार करते है कि पूर्व में उनको तत्व ज्ञान था, परन्तु सम्बन्धो के मोह वश उस ज्ञान पर अज्ञान का आवरण पड़ गया था, जो अब हट गया है।
अध्याय २ श्लोक ६२-६३ में वर्णन हुआ है कि आसक्ति से कामना पैदा होती है। कामना से क्रोध पैदा होता है। क्रोध होनेपर सम्मोह (अविवेक) उत्पन्न हो जाता है। सम्मोह से स्मृति का विभ्रम होता है। स्मृति विभ्रम होनेपर बुद्धिका नाश हो जाता है। बुद्धिका नाश होनेपर मनुष्यता नष्ट हो जाता है।
अर्जुन स्वीकार करते है कि सम्बन्धों में आसक्ति के कारण उनको विस्मृति हो गई थी। अब आप के ज्ञान के प्रसाद से विस्मृति भंग हो गई है।
स्मृति इस बात की है कि इस संसार के होने का कारण, मनुष्य द्वारा होने वाले कार्य आदि, का कारण परमात्मतत्व है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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