भावार्थ:
परस्थिति अनुसार स्वयं से प्राप्त कार्यों को कर्तव्य मान कर, निश्चित और तत्परता से करना चाहिये। प्राप्त कार्यों में कोई फलासक्ति, कोई स्वार्थ नहीं होना चाहिये और कोई क्रियाजन्य सुख भोगने की चाहा भी नहीं होने चाहिये। इस प्रकार कर्तव्यमात्र करनेसे कर्ताका उस कार्य से सम्बन्ध विच्छेद हो जाता है और वह शांति का अनुभव करता है।
प्राप्त कर्तव्यों को तत्परता पूर्वक करना और कार्यों में आसक्ति और फल का त्याग ही सात्त्विक त्याग है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
Read MoreTo give feedback write to info@standupbharat.in
Copyright © standupbharat 2024 | Copyright © Bhagavad Geeta – Jan Kalyan Stotr 2024