श्रीमद भगवद गीता : ११

न हि देहभृता शक्यं त्यक्तुं कर्माण्यशेषतः।

यस्तु कर्मफलत्यागी स त्यागीत्यभिधीयते ।।१८-११।।

 

 

कारण कि देहधारी मनुष्यके द्वारा सम्पूर्ण कर्मोंका त्याग करना सम्भव नहीं है। इसलिये जो कर्मफलका त्यागी है, वही त्यागी कहा जाता है। ।।१८-११।।

 

भावार्थ:

भगवान श्रीकृष्ण पुनः सपष्ट रूप से कहते है कि किसी भी मनुष्य मनुष्य के लिये शरीर से हो रहे कार्यों का त्याग करना संभव नहीं। इस बात को अध्याय ३ श्लोक ५ में कहा गया है। शारीरिक कार्य को त्याग करने पर भी मानसिक क्रिया होती ही रहती है।

अतः अगर जो त्याग करना है, तो वह कर्मफल त्याग है।

 

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