श्रीमद भगवद गीता : ०१

अध्याय २ श्लोक १

 

सञ्जय उवाच

तं तथा कृपयाऽविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्।

विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः।।२-१।।

 

संजय ने कहा: इस प्रकार करुणा और विषाद से अभिभूत, अश्रुपूरित नेत्रों वाले अर्जुन को भगवान् मधुसूदन ने यह वचन बोले।

 

भावार्थ:

अध्याय २ श्लोक १ – संजय ने कहा:

अर्जुन अपने कुटुम्बियों को देखकर उनके मरने की आशंका से मोहग्रस्त होकर इतने शोकाकुल हो गये हैं कि नेत्रोंमें आँसू भर आये! आँसू भी इतने ज्यादा भर आये कि नेत्रों से पूरी तरह देख भी नहीं सकते। इस प्रकार कायरता के कारण विषाद करते हुए अर्जुन से भगवान् मधुसूदन ने ये वचन कहे।

श्लोक के सन्दर्भ मे:

भगवान् श्रीकृष्ण को ‘मधुसूदनः’ (मधु नामक दैत्यको मारनेवाले) कहने का तात्पर्य है कि भगवान् श्रीकृष्ण दुष्ट स्वभाव वालों का संहार करने वाले हैं। इसलिये वे दुष्ट स्वभाव वाले दुर्योधनादि का नाश करवाये बिना रहेंगे नहीं।

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