श्लोक के सन्दर्भ मे:
अध्याय २ श्लोक १० – संजय कहते है:
अर्जुन ने बड़ी शूरवीरता और उत्साह पूर्वक योद्धाओं का निरिक्षण करने के लिये भगवान से दोनों सेनाओं के मध्य में रथ खड़ा करने के लिये कहा था। परन्तु जब अर्जुन दोनों सेनाओं के मध्य पहुँचते है, तब वह विषाद युक्त हो कर युद्ध का त्याग कर देते है।
अतः इस परिवर्तित भाव को देखकर भगवान श्रीकृष्ण को हँसी आ जाती है।
भगवान को हँसी आने का दूसरा कारण।
अर्जुन ने अध्याय २ श्लोक ७ में कहा था कि मैं आपके शरण हूँ, मेरे को आप शिक्षा दीजिये की मेरे को क्या करना चाहिये। परन्तु भगवान के कुछ बोले बिना अपनी तरफ से ही अर्जुन निश्चय कर लेते है कि ‘मैं युद्ध नहीं करूँगा’। पुनः यह विपरीत वक्तव्य था।
भगवान को हँसी आने का तीसरा कारण।
भगवान श्रीकृष्ण प्राप्त प्रतिकूल परिस्तिति में भी सम भाव रहते हुए, वातावरण को हास्य प्रद करते है। और अपनी बात कहना आरम्भ करते है।
निश्चित ही भगवान श्रीकृष्ण के लिये यह विकट परिस्थिति थी की जब युद्ध के लिये शंखनाद हो गया है, तब अर्जुन जैसा महान योद्धा युद्ध करने से इंकार कर देता है।
ऐसी परिस्थिति में भगवान श्रीकृष्ण श्रीमद भगवद गीता के रूप में वह सब वचन कहते है, जिससे की अर्जुन युद्ध के लिए प्रेरित हो जाय। इस प्रकार विचार देते-देते, श्रीमद भगवद गीता के रूप में एक ग्रन्थ प्रस्तुत होता है।
ग्रन्थ का अध्यन करने वाले को अध्यन से पूर्व मुख्य रूप से यह विचार कर लेना चाहिये कि भगवान श्रीकृष्ण के वचनों का उद्देश्य क्या था?
भगवान श्रीकृष्ण के वचनों का उद्देश्य था, अर्जुन के शोक को दूर करना और अर्जुन युद्ध के लिए प्रेरित करना।
अर्जुन के शोक का कारण था, उसमें स्थित विषमता, विकार एवं अज्ञान। अतः भगवान श्रीकृष्ण ने वह सब उपदेश दिये जिससे की अर्जुन में स्थित विषमता, विकार एवं अज्ञान दूर हो जाय। साथ में भगवान श्रीकृष्ण ने वह सब ज्ञान दिया जो अर्जुन का कल्याण करने वाला हो। परन्तु इस प्रक्रिया में एक ऐसा ग्रन्थ प्रस्तुत होता है जो सम्पूर्ण मानव समाज के लिये कल्याण करने वाला है।
तीसरा कारण यह भी है की भगवान श्री कृष्ण प्राप्त प्रतिकूल परिस्तिति में भी वह सम भाव रहते हुए, वातावरण को हास्य प्रद करते हुये अपनी बात कहना आरम्भ करते है।
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