भावार्थ:
अध्याय २ श्लोक १२ – भगवान श्रीकृष्ण कहते है:
पूर्व श्लोक में सम्बन्धियों को लेकर शोक क्यों नहीं करना चाहिये। उसके लिये भगवान कहतें हैं कि, मैं कृष्ण रूप से, तुम अर्जुन रुप से तथा यह सब लोग राजा रूप से पूर्व में भी नहीं थे और भविष्य में भी नहीं रहेंगे। परन्तु चेतनतत्त्व रूप से हम पूर्व में भी थे और भविष्य में भी रहेंगे।
इस कथन के दो भाग है।
पहला कि जब ये शरीर नहीं थे, तब भी हम सब चेतनतत्त्व रूप में थे और जब ये शरीर नहीं रहेंगे तब भी हम सब चेतनतत्त्व रूप में रहेंगे। अर्थात् ये सब शरीर नाशवान् हैं और चेतनतत्त्व अविनाशी।
भूत, भविष्य और वर्तमान-काल में तथा किसी भी देश, परिस्थिति, अवस्था, घटना, वस्तु आदि में चेतनतत्त्व का किञ्चिन्मात्र भी अभाव नहीं होता।
दूसरा कि मैं, तुम तथा राजा लोग – ये तीनों शरीर को लेकर तो अलग-अलग हैं, पर चेतनतत्व रूप से एक ही हैं।
इसलिए इन सब के लिये शोक करना नहीं बनता।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
Read MoreTo give feedback write to info@standupbharat.in
Copyright © standupbharat 2024 | Copyright © Bhagavad Geeta – Jan Kalyan Stotr 2024