श्रीमद भगवद गीता : २६

अध्याय २ श्लोक २६

अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम्।

तथापि त्वं महाबाहो नैवं शोचितुमर्हसि।।२-२६।।

 

हे महाबाहो! यदि तुम केवल शरीर का अस्तित्व ही मानो तो भी वह नित्य पैदा होनेवाला एवं नित्य मरनेवाला है। इसलिये तुम्हारा इस प्रकार शोक करना उचित नहीं है। ||२-२६ ||

भावार्थ:

अध्याय २ श्लोक २६:

– भगवान् श्रीकृष्ण कहते है: मनुष्य प्राय, जो विषय इन्द्रियों-बुद्धि से ज्ञात होता है, केवल उसी को सत्य मानता है। इसलिये भगवान् श्रीकृष्ण इस और अगले श्लोक में भौतिकवादी विचारों का दृष्टिकोण केवल तर्क के लिए प्रस्तुत करते है।

शरीर-शरीरी के अलग-अलग होने का विचार न करके अगर केवल शरीर के होने का विचार करे तो ज्ञात होगा कि, सूक्ष्मरूप से वीर्यका जन्तु रज के साथ मिल कर बीज रूप धारण करता है। बीज बढ़ते-बढ़ते बच्चे का रूप लेता है और फिर उसका जन्म होता है। जन्म के बाद वह बढ़ाता है, फिर घटता है और अन्त में मर जाता है। इस तरह शरीर एक क्षण भी एकरूप से न रहकर बदलता रहता है अर्थात् प्रतिक्षण जन्मता-मरता रहता है।

श्रीकृष्ण कहते हैं कि यदि शरीर का जन्म-मृत्यु का यह निरन्तर प्रवाह ही जीवन है, तो, हे शक्तिशाली अर्जुन! तुम को शोक नहीं करना चाहिये।

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