भावार्थ:
युग-युगान्तर से मनुष्य ब्रह्माण्ड की रचना और उसके क्रिया शील होने को लेकर विस्मित होता रहा है। वह क्या शक्ति है, तत्व है जिसके कारण सृष्टि क्रियाशील है।
अतः भगवान श्रीकृष्ण कहते है कि विद्वान् लोग परमात्मतत्व को अलग-अलग प्रकार से जानने की कोशिश करते है। जानकर विभिन प्रकार से उसका वर्णन करते है और सुनने वाले विभिन प्रकार से सुने हुए का अर्थ लेते है। परन्तु योग स्थित योगी ही इसको तत्व से जान पाते है, अनुभव करते है।
श्लोक के सन्दर्भ मे:
अध्याय २ श्लोक १८ में परमात्मतत्व को ‘अप्रमेय‘ पद से परिभाषित किया गया है। अध्याय २ श्लोक २५ में भगवान श्रीकृष्ण कहते है कि परमात्मतत्व अव्यक्त और अचिन्त्य है।
इसलिये जो विषय (परमात्मतत्व) अप्रमेय, अव्यक्त, अचिन्त्य है, वह मनुष्य के लिये आश्चर्य स्वरूप होना ही है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
Read MoreTo give feedback write to info@standupbharat.in
Copyright © standupbharat 2024 | Copyright © Bhagavad Geeta – Jan Kalyan Stotr 2024