श्रीमद भगवद गीता : ३०

सांख्ययोग – सब शरीरों में स्थित नित्य, अवध्य देही के लिये शोक उचित नहीं।

देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत।

तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि।।२-३०।।

 

हे भारत! यह देही सबके शरीर में नित्य ही अवध्य है, इसलिये समस्त प्राणियों के लिये तुमको शोक करना उचित नहीं है। ||२-३०||

भावार्थ:

भगवान श्रीकृष्ण कहते है कि मूल तत्व जानने की यह है कि, परमात्मतत्व नित्य और अविनाशी है। इसलिये समस्त प्राणियों के लिये तुमको शोक करना उचित नहीं है।

यह जीवात्मा सर्वव्यापी होनेके कारण मनुष्य, पशु, पक्षी, कीट, पतंग आदि स्थावर-जङ्गम् सम्पूर्ण प्राणियोंके शरीरोंमें नित्य अवध्य अर्थात् अविनाशी रूपसे स्थित है।

इसलिये तुम्हें किसी भी प्राणीके लिये शोक नहीं करना चाहिये; क्योंकि इस देहीका विनाश कभी हो ही नहीं सकता और विनाशी देह क्षणमात्र भी स्थिर नहीं रहता।

अर्जुनके मनमें कुटुम्बियों के मरने का शोक था और गुरुजनों को मारने पर होने वाले पाप का भय था। शोक था कुटुम्बियों से होने वाले वियोग का और भय था, पाप के कारण नरक प्राप्ति का। अतः भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन का शोक दूर करने के लिये अध्याय २ श्लोक ११ से इस श्लोक तक का प्रकरण कहा है।

 

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