भावार्थ:
इस श्लोक में भगवान् श्रीकृष्ण स्पष्ट शब्दों में कहते है कि जो मनुष्य अपने स्वधर्म का पालन नहीं करता वह कीर्ति का त्याग करता है और पाप को प्राप्त होता है।
अर्जुन को यह युद्ध परिस्थिति वश स्वयं से प्राप्त हुआ था, परन्तु वह सम्बन्धों के कारण युद्ध से विमुख हो रहे थे।
अध्याय १ श्लोक ३६ में अर्जुन कहते हैं – युद्ध करने से पाप लगेगा। इस के उत्तर में भगवान् कहते हैं – युद्ध न करने से पाप लगेगा।
श्लोक के सन्दर्भ मे:
मनुष्य जब समाज, देश, प्रकृति के कल्याण के लिये कार्य कर्तव्य मान कर करता है, तब मनुष्य ‘श्रेष्ठ पुरुष’ की श्रेणी में स्थित होता है। श्रेष्ठ पुरुष होने से समाज में कीर्ति स्वयं प्राप्त होती है। मनुष्य का उद्देश्य कीर्ति को प्राप्त करने का नहीं होना चाहिये, अपितु ‘श्रेष्ठ पुरुष’ बनने का होना चाहिये।
मनुष्य का जो कर्तव्य है – धर्म है, उसका पालन न करना पाप है। पाप पूर्ण कार्य प्रतिकूल परिस्थिति उत्तपन्न करने वाले होते है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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