श्रीमद भगवद गीता : ३६

स्वधर्म – युद्ध न करने पर सार्मथ्य की निन्दा होना दुःख की बात है।

 

अवाच्यवादांश्च बहून् वदिष्यन्ति तवाहिताः।

निन्दन्तस्तव सामर्थ्यं ततो दुःखतरं नु किम्।। २-३६।।

 

तुम्हारे शत्रु तुम्हारे सार्मथ्य की निन्दा करते हुए बहुत से अकथनीय वचनों को कहेंगे, फिर उससे अधिक दु:ख की बात क्या होगी? ||२-३६||

भावार्थ:

युद्ध करने में दिखलाये हुए तेरे सामर्थ्य की निन्दा करते हुए बहुत से अनेक प्रकार के न कहने योग्य वाक्य भी तुम्हे कहेंगे।

उस निन्दा जनित दुःखसे अधिक बड़ा दुःख क्या है अर्थात् उससे अधिक कष्ट देने वाला दुःख कोई सा भी नहीं है।

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