भावार्थ:
इस श्लोक से भगवान श्रीकृष्ण बुद्धियोग साधना का प्रकरण आरम्भ करते है।
मनुष्य जब अपनी कामना पूर्ति के लिये कार्य करता है, तब उस कार्य की सफलता-विफलता; लाभ-हानि का विचार कर सुखी-दुःखी होता है। अतः मनुष्य का सुःख-दुःख स्वयं की कामना पूर्ति से सबंधित है। परन्तु जब मनुष्य स्वधर्म का पालन समाज कल्याण के लिये करता है, तब कार्य के फल स्वरूप जो प्राप्त होता है, उसमें स्वयं के लिये न लाभ है न हानि।
अतः भगवान श्री कृष्ण कहते है कि युद्ध से होने वाले जय-पराजय, लाभ-हानि को देखना तुम्हारा उद्देश्य नहीं। तुम्हारा उद्देश्य तो केवल अपने स्वधर्म का पालन करने का होना चाहिए।
तुम्हारी, कार्य में प्रवृति सुख की कामना से न हो और कार्य से निवृति दुख के भय से न हो। कर्मो में तुम्हारी प्रवृति और निवृति केवल सनातन धर्म के अनुसार ही हो।
जब कार्य स्वयं के लिये होता है, फल से सम्बन्ध होता है, तो उसका फल पाप-पुण्य रूप से बन्धन होता है। परन्तु जब कार्य करने का कारण कर्तव्य पालन और समाज कल्याण का हो तो उसका फल पाप-पुण्य रूप से बन्धन नहीं होता।
अर्जुन को यह आशंका थी कि युद्ध में अपने लोगो को मरने से पाप लगेगा। परन्तु भगवान यहाँ कहते हैं कि पाप का हेतु युद्ध नहीं है, प्रत्युत अपनी कामना है, राग-द्वेष है। अतः अर्जुन तुम अपनी कामना का त्याग करके युद्ध (जो तुम्हारा स्वधर्म है) के लिये खड़ा हो जाओ।
यहाँ ‘पाप’ शब्द पाप और पुण्य – दोनो का वाचक है और दोनो मनुष्य के लिए बन्धन के कारण हैं। भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन! समता में स्थित होकर, प्राप्त युद्धरूपी स्वधर्म कर्तव्य कर्म करने से तुझे पाप और पुण्य – दोनों ही नहीं बाँधेगे।
सनातन धर्म पालन हेतु:
मनुष्य के लिये युद्ध से बढ़कर कोई ओर घोर परिस्थिति नहीं हो सकती। अतः जब मनुष्य युद्ध जैसी घोर परिस्थिति में भी अपना कल्याण कर सकता है, तब अन्य किसी भी परिस्थिति में मनुष्य अपना कल्याण निश्चित ही कर सकता है।
मनुष्य को किसी भी परिस्थिति में प्राप्त कर्तव्य का त्याग नहीं करना चाहिये, प्रत्युत उत्साह और तत्परतापूर्वक अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिये। कर्तव्य का पालन करने में ही मनुष्य की श्रेष्टता है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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