भावार्थ:
जिस स्थिति में साधक परम् शान्ति को प्राप्त होता है, वह ही ब्राह्मी स्थिति है। अर्थात परम् शान्ति की प्राप्ति ही परमात्मा प्राप्ति है।
मनुष्य जब ब्रह्मा स्थिति को प्राप्त हो जाता है, तब मनुष्य को शरीर से मोह एवं मृत्यु को लेकर होने वाले भय, से मुक्ति मिल जाती है। इसलिये मनुष्य को, अगर यह ब्रह्मा स्थिति जीवन के अन्तिम काल से पहले भी प्राप्त हो जाय तो मनुष्य मोह, भय से मुक्त हो कर परम् शान्ति से निर्वाण (मृत्यु) को प्राप्त होता है।
परम् शान्ति से मृत्यु को प्राप्त होना ही मोक्ष है।
श्लोक के सन्दर्भ मे:
अध्याय २ श्लोक ७१ और इस श्लोक से स्पष्ट हो जाता है कि परम् शान्ति, परमानन्द, परमात्मा की प्राप्ति जीवन काल की स्थिति है, मृत्यु के बाद की नहीं है। अतः यह योग साधना जीवन के अन्तिम पड़ाव का विषय नहीं है, अपितु जीवन के आरम्भ से ही करने का विषय है।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]
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